सजीव वस्तु की सबसे सरल परिभाषा कहती है की, कोई भी वस्तु जिसमे चेतना है वो सजीव है. पर चेतना क्या सिर्फ बाहरी होती है, जैसे ठण्ड का लगना, जलन या सुई की चुभन ? नहीं , हमे समझने की जरूरत है की चेतना एक आंतरिक( internal ) गुण भी है , जैसे किसी को ठण्ड में सिकुड़ते देख दुखी होना, भीख मांगते बच्चे को देख दुखी होना या जख्मी जानवर के लिए दया.
हम ये मान लेते हैं की जीवन सिर्फ बाहरी चेतना का नाम है और आंतरिक चेतना को महत्त्व नहीं देते. हम अपनी आंतरिक चेतना को बार -बार दबा देते हैं . जब कोई इन्शान पहली बार घूस लेता है तो उनकी आंतरिक चेतना पुरजोर विरोध करती है, वैसे तो हम ने अब एक ऐसा समाज बना लिया है जहा आंतरिक चेतना को पहले हिन् धीरे -धीरे मार दिया जाता है. और हमे एक ऐसी सोच दी जाती है जहा हम सामाजिक नजरिये पर खुद को सफल करना चाहता है . हमारा सारा उद्देश्य भौगोलिक वस्तु को प्राप्त कर समाज में सम्मान पाना हो जाता है. सम्मान की परिभाषा इतनी बदल गयी है की इंसान इसके लिए आंतरिक चेतना की आहुति दे देता है .
इंसान बाहरी चेतना ख़त्म होने पे भी कई बार मरता नहीं है , कोमा में चला जाता है या ब्रेन डेड हो जाता है . आंतरिक चेतना ख़त्म हो जाने पे इंसान मरता नहीं पर फिर मौत नहीं आती बस एक दिन दिल , फेफड़ा ,किडनी और दूसरे अंग काम करना बंद कर देते हैं ….
जिन्दा
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